| संदेसो
                  
                    
                   बदनीत-बरणण घघ्घर निसांणी
 पूतां पग फेरो गरब धणेरो बेटी व्ही बोकन्दा है।
 बेटां बतलावे खूब खिलावे मन बेटी दिसमन्दा है।।
 जोबन सुत जोरां हिये हिलोरां फूहड़ बोली फन्दा है।
 ताता नैं तावे कींम कमावै धूड़ उडावण धन्धा है।।1।।
 बेटी दुख बैली सादी सैली सेवा भाव भरन्दा है।
 देसी सो लैसी कीं ना कैसी पीहर कोड करन्दा है।
 सासरिये सोरी चाहे दोरी बाप न बुरा बकन्दा है।
 जबरा सुत जंगी स्वारथ संगी झूठी बात जकन्दा है।।2।।
 परणी घर पाी हरख हताई कान्धै हाथ धरन्दा है।
 जननी अर जामी बैठा सामी कीं ना सरम करन्दा है।
 पीछम री पायौ भारत आयौ गरब करावत गन्धा है।।3।।
 दारु दपटीजै रांडां रीजै छिब परणी छीजन्दा है।
 कर बुरी कमाई गर्त गमाई बद बीजं बीजन्दा है।।
 जुवारी जोरां सट्टा सोरां खो सब कुछ खीजन्दा है।
 धांडाई धारी हिम्मत हारी धरम नहीं धीजन्दा है।।4।।
 भाई ना भावे कलह करावे काम पड्यो किसकन्दा है।
 बेरी सूं भूंडा मतलब मूंडा ऊंडै स्वारथ अन्धा है।।
 मतलब नैं मीठा चींचड़ चप नैड़ा चिपकन्दा है।
 दिल सूं ऐ दूरा स्वार्थ सूरा गरज मिट्यां गपकन्दा है।।5।।
 फैसन में फाटै चाटां चाटै सिगरेटां सूसन्दा है।
 भाड़ो ना भागै डोल उलांगै लार पड्यां लपकन्दा है।।
 चौकड़ चंडाली साथ समाली चल चल कर वे चन्दा है।
 घाली घर घाई घाटो भाई जाजम नांय जमन्दा है।।6।।
 अन्तर में ऊंधै सौरभ सूंघै धवल वेस धारन्दा है।
 झूठा दे झांसा कपटी कासा तिल माथे तारन्दा है।।
 चक्कर में चाढै मूरख माडै आडा आय फिरन्दा है।
 गप गर्त गिरावे पइसो पावे फाफा नन्द फड़नन्दा है।।7।।
 मिन्दर रे मांही लगन लगाई बुगला भगती बन्दा है।
 पललकां झपकावे ठोंग रचावे टोकर लेय टिकन्दा है।।
 घम दिन में घोलै होलै होलै मन मूरत रीझन्दा है।
 भगवत लै भागै सब धन सागै कुण विस्वास करन्दाहै।।8।।
 जूतां जिस जोवे टग टग टोवे झप मोके झांपन्दा है।
 नारी रे नैड़े छुप छुप छैडे भाव मनां भांपन्ता है।।
 पर पेटी उतारी करां कटारी रामहिराम रटन्दा है।
 मन्दिर रे मांही इसी कमाई किणविध पाप कटन्दा है।।9।।
 गांजै गेलीज भांगां भीजै सुलफा पी सूखन्दा है।
 कोकल कुरलावे अन ना आवे कामण घर कूकना है।
 इज्जत रख आलै नांय समालै भव भव में भटकन्दा है।
 पुरसारथ पोचा आदर ओछा इसड़ा नर अटकन्दा है।।10।।
 खावण नै खाता गपी गाथा ढीला हाथां हंदा है।
 खेती घर खासी आय उबासी आलस में ऊंघन्दा है।।
 महनत में मोला चिलकै चोला पोलां आय पड़न्दा है।
 मूंछाज मरोड़े चमके चौड़े ओड़े खाय अड़न्दा है।।11।।
 बौपारां बारी खलके खारी लोगां नै लूटन्दा है।
 ताकढ़ कम तोले छाती छोले चुपकैसी चुटन्दा है।।
 भावां में बेसी लपके लैसी छियां उधार छलन्दा है।
 बिगड्या बौपारी भारत भारी क्रेता कर्ज कलन्दा है।।12।।
 मेले अणमेली बेचण भेली चौड़े सांड चरन्दा है।
 तिण नै कुण ताड़ै भड़िया बाड़ै कई उजाड़ करन्दा है।।
 आवे अधिकारी रिसवत प्यारौ मूंडा सूं मुलकन्दा है।।
 होटल लै हालै मसती मालै जाम साम छलकन्दा है।।13।।
 नेतां नकटाई अधिका उपाी रंक गला रोसन्दा है।
 आफत सूं आगँ बेगा भागै खलके घन खोसन्दा है।।
 भोला भिड़कावे पईसो पावे चोखा माल चरन्दा है।
 बोटां रा बेली जाजम झैली मगता गरज मरन्दा है।।14।।
 अपणाय अड़ंगा देसां दंगा चूंची लगा चलन्दा है।
 जनता नीं जांणै मौजा मांचै रिपु सम जाल रचन्दा है।।
 भासण भड़कावे रोल मचावै गोल गोल गुड़कन्दा है।
 आदत रा एबी नेता जेबी टप रोले टुकन्दा है।।15।।
 तसकरियां तेजी रिसवत हेजी बोली पुलिस बिकन्दा है।
 अफसरिया ओले सोनो तोले गप आधो गटकन्दा है।।
 पूरा पर चारी दुनी दीदारी जाजम झुठ जमन्दा है।।
 सीमा पर ोसरी रिसवत कोरी रिसकत बलां रमन्दा है।।16।।
 नीती ना नैड़ी किसमत पैड़ी रूखाला लूँटन्दा है।
 रीतां रुखाला हाथां माला बदनीती बूठन्दा है।।
 भाई रा भाी खूनां तांई तिरसा हुवा तलन्दा है।
 बैना री भाई लाज गमाई कादै पाप कलन्दा है।।17।।
 न्यावां ना नीती रूलगी रीती पईसां प्रती पड़न्दा है।
 वकील्या विवादी न्यावां ब्याधी खोटे पाप खड़न्दा है।।
 रिसवत सूं राजी सासण साजी जज जेबां जाड़न्दा है।
 रीडरिया रोले बोले होले मुख रिसवत फाड़न्दा है।।18।।
 लांठा लेज्यावे माल दबावे चुप सरकार चलन्दा है।
 जूतां रेजोरां दिपवे दोरां फोगट माल फलन्दा है।।
 कारज ना करियो दुरबल मरियो फिर जूती फडान्दा है।
 निबलां रा नांही भीडू भाई सहयोगो सरमिन्दा है।।19।।
 केसरी-कीरत
 दूहा
 भूरां मोको भालनै, प्रबल बढ़ाई पीड़।
 छीड़ हुवी आरत छिता, भारत ऊपर भीड़।।1।।
 छप्पय
 फूल्या घमा फिरंग, भारती किरतब भूल्या।
 सूरां थाई सुन्न, जूवा सर बूढ़े झूल्या।।
 लखी वासणा लीण, कविजण री कवितावां।
 बेहा केम बचाय, लागतरि अँध लिजावां।।
 कलिजिया बिच कादै करम, मरजादा भारत मिटी।
 मीच भारत अंखियां मया, घूंट हलाहल री घिटी।।2।।
 दूहा
 खिलके चढ़े फिरंग खल, बिलखें भारत बीर।
 धीर छोड भारत धरम, नैणां नाखे नीर।।3।।
 छप्पय
 कूक रया किरसांण, बिलखै ऊभा बोपारी।
 भालै नीचो भूप, दीन हुयगी धर दारी।।
 हुकम फिरंगी हलै, कोई नीं मानै कहमौ।
 है सत्ता पर हाथ, राखवे उणविध रहणौ।।
 इण औसर धर पर अडिग, मिनख हरी निज मेलियो।
 परकास हुवो पृथवी प्रतख, धीर फिरंगी दहलियो।।4।।
 दूहा
 कोड जिको घर कृष्ण रै, तिको देस सिरताज।
 सुत केसरी हर समपियो, आंणद थायो आज।।5।।
 छप्पय
 सहलै सात समंद, हियो हिमगिरी हरखायौ।
 जमना गंगा जौर, दौर अदको दरसायौ।।
 ब्योम सुमन बरखाय, हुई धर पर हरियाली।
 लिखिया अदका लेख, बा लेखणी बेहाली।।
 मायो न उछब पृथवी मझां, पखी दया पर मेसरी।
 हरख रही घणी हुलास हूं, दसूं दिसावां देसरी।।6।।
 दूहा
 टेलण पेख्यो टाबरां, खेलण मन खूंखार।
 सेलण अरि बढ़ियो सजक, भारत झेलण भार।।7।।
 छप्पय
 जोधपणा रो जौर, दृग केसरी दरसायौ।
 दसा देस री देख, अथक अन्तर अकुलायौ।।
 फिरंगियां रा फेल, जिका नहँ ओरू झेलां।
 बांणी करा बुलन्द बृथा नहं पापड़ बेलां।।
 उठायो साद केसरी इतौ, बितौई देस में ब्यापियौ।
 कोपियो इसूं फिरंग कस, रंग वीर पग रापियौ।।8।।
 दूहा
 बालक मांही बीरता, भरिया केसरी भाव।
 भूल्या नरांज भेटियो, सूरापण रो साव।।9।।
 छप्पय
 जण जण केसरी जांण, ओजके सूं उठावाया।
 आलस मोड्यो अंग, आंगणै पाछै आया।।
 आंख्या देखी एम, मही हुई जेम मुसांणा।
 आंथी भारत आभ, दरसवे दुरलभ दांणा।।
 चारण सोदो केसरी चमक, चहुंदिस कीधो चानणौ।
 गोरां आडो खाड़ो गजब, मग रो पड़ियो मानणौ।।10।।
 दूहा
 मानी नृप मेवाड़ रो, हुवे न केसरी होड़।
 जागारी दीधी जतन, अपणायो निज औड़।।11।।
 छप्पय
 प्रेम रहीसी पाय, धीर नहँ मन में धार्यौ।
 बानै इसड़े बीर, नेह निज केय निहार्यौ।।
 रियो हिन्द घर रोय, मौज हूं किणविध मांणूं।
 दुखीज सारो देस, एस मूँ केम उपाणूँ।।
 जण जण सागै हूँ झूंझ हूं, होणहार सो होवसी।
 ताकत गोरा केसरी तणी, जण जण मांही जोवसी।।12।।
 दूहा
 रयोज राजस्थान में, जोधा रो घण जाड।
 चिणगारीइत चेतसी, ऊपजी करजन आड।।13।।
 छप्पय
 करजन मन तरकीब, एक नव भाव उहायौ।
 भेला दिल्ली भूप, करण आदेस करायौ।।
 तिण में झट तयार, रजा फतमल रांणा री।
 त्यीर करी तुरंत, उठँ फतमल आंणा री।।
 बगसीस किया केसरी बिनै, चेतावणी चरूं टिया।
 री करजन री मन में रजा, गुण ग्राही नांही गिया।।14।।
 दूहा
 लागी इसड़ी लाय लड़, बागी हुयगा बौत।
 आधी कर बा अंध नै, जागी घर घर जौत।।15।।
 छप्पय
 कियो फिरंगी कोप, लागिया केसरी लारै।
 पवग पग मिनखां पूछ, सोधकरियो निजसारै।।
 झकड़ परो जंजीर, जेल कर दीनो जोरां।
 केसरी तणे कुटुम्ब, आफतां राली ओरां।।
 संदेसो पूगो घर घर सरब, सुत केसरी रो सजियो।
 खिलाफ फिरंगियो इत खड़़ण, बाज लड़ण हित बजियो।।16।।
 दूहा
 ढालै पितु मालै उकत, निज कुल वालै नाक।
 कालै वालै क्रोध कुण, रालै ऊपर राख।।17।।
 छप्पय
 सुकवि रो संदेस, प्रताप घर घर पुगायौ।
 खूब फिरंगी खेल, रेत रे माँह रलायौ।।
 निज कर सूं नुकसांण, उठा लीधो अंगरेजां।
 फूलां संदी फेंक सूलरी साजी सेजां।।
 झुकियो नहीं परताप जद, हाथ लगा गोरा हरण।
 वारिया प्रांण भारत वजह, कुल चारणख्याती करण।।18।।
 दूहा
 केसरी सुत फिरंगी रिपु, दिपतो बुझियो दीप।
 फेली लाय फिरंगियां, सोरा नांय समीप।।19।।
 छप्पय
 भूरा हंदो भाव, दिनोदिन मंदो देख्यौ।
 जण जण मांही जौर, परम केसरी रो पेख्यौ।।
 जाग्यौ भारत जौर, चेतण आई चौड़े।
 हिम्मत किणरी होय, मरद ऐ पाछा मौड़े।।
 आंथ्यो न राज मांही अरक, फिरंग अणूं ता फेलिया।
 केसरी आगै विमरी कला, बेसक पापड़ बेलिया।।20।।
 दूहा
 दाढ़ी वालौ डोकरो, सोदो केसरी सींह।
 होम दियो सह देसहित, दिपी चेतण दीह।।21।।
 छप्पय
 धिन धिन केसरी धीर, दिलोदिल गोरा दाजै।
 तन मन धनतुं हीज, सोय भारत नैं साजै।।
 करीदनौ कुरबांण, सुतन तूँ भारत सारू।
 क्हे लक्ष्मण कवियांण, ध्यानि भारत रो धारू।
 तांता लागा तब गुण तणा, (हूं) बातां रती बखांण वी।
 महिमा अथाग मतिसंद मम, आखी जिसड़ी आंणवी।।22।।
 सोरठो
 आजौ भल अवनही, सँदेसो नव साजबा।
 रचीज केसरी रीह, कविया लक्ष्मण कीरती।।23।।
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